Monday, 4 June 2012

डूब जाता हूँ मैं


एक   ही   घूँट   में   डूब   जाता   हूँ    मैं |
फिर भी सागर से बाज़ी  लगाता  हूँ  मैं ||

भूख    से     मेरे     बच्चे    मरे  तो  मरे |
रोज़   बारूद      ढेरों     जुटाता    हूँ    मैं ||

ख़ुद भी जल  जाऊंगा  जानता  हूँ  मगर |
फिर  भी  घर  दूसरों  के  जलाता  हूँ  मैं ||

एसा अक्ल-ओ-ख़िरद का दिवाला पिटा |
गिरती  दीवार  में  दर    बनाता   हूँ  मैं ||

मेरे  अन्दर  भरी कितनी  मक्कारियां |
मुस्कुरा  कर   उन्हें बस  छुपाता हूँ मैं ||

बात  आदिल  भला कैसे  समझे  सही |
देखता हूँ मैं कुछ , कुछ बताता  हूँ  मैं ||

सामने  डाल  दे  जो   भी  टुकड़ा  मेरे |
सामने उसके  ही दुम  हिलाता  हूँ  मैं ||

मुझसे बातें हया  की किया मत करो |
बेहयाई    हमेशा     दिखाता    हूँ   मैं ||

बाज़ फ़ितरत से ‘सैनी’मैं आता नहीं |
बारहा कुछ न कुछ चोट खाता हूँ  मैं ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी       
     

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