एक ही घूँट में डूब जाता हूँ मैं |
फिर भी सागर से बाज़ी लगाता हूँ मैं ||
भूख से मेरे बच्चे मरे तो मरे |
रोज़ बारूद ढेरों जुटाता हूँ मैं ||
ख़ुद भी जल जाऊंगा जानता हूँ मगर |
फिर भी घर दूसरों के जलाता हूँ मैं ||
एसा अक्ल-ओ-ख़िरद का दिवाला पिटा |
गिरती दीवार में दर बनाता हूँ मैं ||
मेरे अन्दर भरी कितनी मक्कारियां |
मुस्कुरा कर उन्हें बस छुपाता हूँ मैं ||
बात आदिल भला कैसे समझे सही |
देखता हूँ मैं कुछ , कुछ बताता हूँ मैं ||
सामने डाल दे जो भी टुकड़ा मेरे |
सामने उसके ही दुम हिलाता हूँ मैं ||
मुझसे बातें हया की किया मत करो |
बेहयाई हमेशा दिखाता हूँ मैं ||
बाज़ फ़ितरत से ‘सैनी’मैं आता नहीं |
बारहा कुछ न कुछ चोट खाता हूँ मैं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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