अब लबों पर तराने नहीं |
महफ़िलों के ज़माने नहीं ||
गीत है ,छंद है ,है ग़ज़ल |
आज इनके घराने नहीं ||
चार पैसे हुए पास में |
होश मेरे ठिकाने नहीं ||
खाली बंगले पड़े तो कहीं |
लोग हैं आशियाने नहीं ||
छोडिये तीर है मेरा सर |
और तो कुछ निशाने नहीं ||
मैं मनाते - मनाते थका |
आज तक आप माने नहीं ||
हाल ‘सैनी’ का क्या हो गया |
खाने को चार दाने नहीं ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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