Thursday, 7 June 2012

मनाते-मनाते थका


अब लबों पर तराने  नहीं |
महफ़िलों के ज़माने नहीं ||

गीत है ,छंद  है ,है  ग़ज़ल |
आज  इनके  घराने  नहीं ||

चार   पैसे   हुए   पास   में |
होश   मेरे   ठिकाने   नहीं ||

खाली बंगले पड़े  तो  कहीं |
लोग   हैं  आशियाने  नहीं ||

छोडिये   तीर  है  मेरा  सर |
और तो कुछ निशाने  नहीं ||

मैं    मनाते - मनाते   थका |
आज तक आप माने  नहीं ||

हाल ‘सैनी’ का क्या हो गया |
खाने   को   चार   दाने  नहीं ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी   

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