मुझसे कतरा के आज निकले क्यूँ |
मेरे सरकार इतने बदले क्यूँ ||
ख़ूब खाते हैं ख़ूब पीते हैं |
कुछ मरज़ है नहीं तो दुबले क्यूँ ||
मैं ख़तावार जब नहीं तेरा |
रोज़ होते हैं मुझ पे हमले क्यूँ ||
शाख़ पर ही तो गुल की क़ीमत है |
लोग फिर इन गुलों को मसले क्यूँ ||
जब भी बातें चले सदाक़त की |
तेरे चेहरे का रंग बदले क्यूँ ||
मेरी आँखों में रोज़ खटके है |
तेरे कपडे ही इतने उजले क्यूँ ||
इक ग़ज़ल पर जो दाद दी उसने |
यार‘सैनी ‘तू इतना उछले क्यूँ ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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