Monday, 14 May 2012

मेरे सरकार


मुझसे कतरा के आज  निकले  क्यूँ | 
मेरे   सरकार    इतने     बदले  क्यूँ ||

ख़ूब     खाते     हैं       ख़ूब   पीते  हैं |
कुछ मरज़ है नहीं  तो   दुबले   क्यूँ ||

मैं    ख़तावार    जब    नहीं      तेरा |
रोज़  होते  हैं   मुझ  पे  हमले  क्यूँ ||

शाख़ पर ही तो गुल  की  क़ीमत  है |
लोग फिर इन गुलों को  मसले क्यूँ ||

जब  भी  बातें  चले   सदाक़त  की |
तेरे   चेहरे   का    रंग   बदले  क्यूँ ||

मेरी    आँखों   में  रोज़  खटके  है |
तेरे कपडे ही  इतने    उजले  क्यूँ ||

इक ग़ज़ल पर जो दाद  दी उसने |
यार‘सैनी ‘तू इतना  उछले  क्यूँ ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी  


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