तुम्हारे पास क्यूँ आते अगर नाराज़ हम होते |
अकड़ के हम भी रह जाते अगर नाराज़ हम होते ||
बुरी बातें बुरे दिन याद रख कर हम नहीं जीते |
न हंस के तुमसे बतियाते अगर नाराज़ हम होते ||
हुई हैं ग़लतियाँ हमसे ये हम तस्लीम करते हैं |
क्यूँ इतना आज पछताते अगर नाराज़ हम होते ||
बताओ क्या कमी देखी हमारे प्यार में तुमने |
ये नज़राना ही क्यूँ लाते अगर नाराज़ हम होते ||
सज़ा बिन ज़ुर्म के भुगती बचा के तुमको रक्खा है |
सज़ा तुमको भी दिलवाते अगर नाराज़ हम होते ||
हवा पे सब का हक़ है जान कर घर की तेरे खिड़की |
न अपनी सम्त खुलवाते अगर नाराज़ हम होते ||
बुलाता है नहीं ‘सैनी’को जब कोई भी महफ़िल में |
तो फिर क्यूँ हम भी बुलवाते अगर नाराज़ हम होते ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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