Monday, 28 May 2012

क्या हक़ीक़त


क्या  हक़ीक़त  में  पीना   सरल  है |
जबकि   हर  घूँट  में  ही   गरल  है ||

संकुचित  हो  गया  वो  सिमट  कर |
वो  ही  व्यापक  हुआ  जो  तरल  है ||

गिर   के   कीचड   में   भी  मुस्कुराए |
जिसकी क़िस्मत में बनना कमल है ||

रोशनी   रोज़      सूरज    से    मांगे  |
चाँद   कहने   को  फिर भी धवल  है ||

उर्दू   हिन्दी    की    बातें    न  कीजे |
दिल  की  भाषा  तुम्हारी  ग़ज़ल  है ||

नेक  नीयत   उसूल  उसके   पक्के |
आदमी    वो    बड़ा    ही  सबल  है ||

आज़मा  लीजे    जब  जी  में  आये |
बात   पर   अपनी  ‘सैनी’अटल  है ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी  

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