क्या हक़ीक़त में पीना सरल है |
जबकि हर घूँट में ही गरल है ||
संकुचित हो गया वो सिमट कर |
वो ही व्यापक हुआ जो तरल है ||
गिर के कीचड में भी मुस्कुराए |
जिसकी क़िस्मत में बनना कमल है ||
रोशनी रोज़ सूरज से मांगे |
चाँद कहने को फिर भी धवल है ||
उर्दू हिन्दी की बातें न कीजे |
दिल की भाषा तुम्हारी ग़ज़ल है ||
नेक नीयत उसूल उसके पक्के |
आदमी वो बड़ा ही सबल है ||
आज़मा लीजे जब जी में आये |
बात पर अपनी ‘सैनी’अटल है ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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