Tuesday, 29 May 2012

चाहता हूँ


 ज़माने  भर  की  बातें  भूल  जाना  चाहता  हूँ |
तेरी आग़ोश में कुछ  पल  बिताना  चाहता  हूँ ||

ज़माने ने दिए हैं ज़ख़्म  जो  उनकी  नमी  को |
तेरे  आँचल   के  साए   में  सुखाना चाहता  हूँ ||

किसी को शौक  है पाले ग़लतफ़हमी मुझे क्या |
मेरा  दिल  साफ़  है  सबको  बताना  चाहता  हूँ ||

न  दीजे  दाद  मुझको  लालसा  इसकी  नहीं  है |
फ़क़त नग़्मा  नया  सबको  सुनाना  चाहता  हूँ ||

तमन्ना  है तो  आकर  लूट  ले  जाओ  ये  सारी |
ख़ुदा से जो  मिली  शफ़क़त  लुटाना  चाहता  हूँ ||

मुझे  कहते  हुए  ये  फ़क़्र   है  मुझ  में  अना  है |
विरासत   मैं   बुज़ुर्गों   की   बचाना  चाहता  हूँ ||

नयी नस्लों में गर कुछ ख़ामियाँ आयें नज़र तो |
बता   कर  रास्ता   उनको  दिखाना   चाहता  हूँ ||

मुझे   मंजूर   है   भूखे   ही   सो   जाना  पड़े  तो |
निवाला   एक    ही   बेदाग़   खाना   चाहता   हूँ ||

सज़ा   दीजे   ख़ता   मेरी  अगर  है  कोई  बेशक |
ख़ता क्या है मैं तुम से   जान  जाना  चाहता  हूँ ||

बढाते  जा  रहे  हैं  लोग  दिल  के  फ़ासिलों  को |
मैं  उन ही फ़ासिलों  को  तो  मिटाना चाहता  हूँ ||

मुझे   अब   मौत  की  आहट  सुनाई  दे  रही  है |
सभी से  आज  मैं  मिलना  मिलाना  चाहता  हूँ ||

अगर मौक़ा  मिले  तो  ज़िंदगी  के  मुद्दओं   को |
ख़ुदा   के   रूबरू   हो   कर   उठाना   चाहता   हूँ ||

हँसा दूँ  आज ‘सैनी’ को  मैं  आँसूं  उसके  पोंछू  |
कमाई   है   यही   जिसको   कमाना  चाहता  हूँ ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

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