ज़माने भर की बातें भूल जाना चाहता हूँ |
तेरी आग़ोश में कुछ पल बिताना चाहता हूँ ||
ज़माने ने दिए हैं ज़ख़्म जो उनकी नमी को |
तेरे आँचल के साए में सुखाना चाहता हूँ ||
किसी को शौक है पाले ग़लतफ़हमी मुझे क्या |
मेरा दिल साफ़ है सबको बताना चाहता हूँ ||
न दीजे दाद मुझको लालसा इसकी नहीं है |
फ़क़त नग़्मा नया सबको सुनाना चाहता हूँ ||
तमन्ना है तो आकर लूट ले जाओ ये सारी |
ख़ुदा से जो मिली शफ़क़त लुटाना चाहता हूँ ||
मुझे कहते हुए ये फ़क़्र है मुझ में अना है |
विरासत मैं बुज़ुर्गों की बचाना चाहता हूँ ||
नयी नस्लों में गर कुछ ख़ामियाँ आयें नज़र तो |
बता कर रास्ता उनको दिखाना चाहता हूँ ||
मुझे मंजूर है भूखे ही सो जाना पड़े तो |
निवाला एक ही बेदाग़ खाना चाहता हूँ ||
सज़ा दीजे ख़ता मेरी अगर है कोई बेशक |
ख़ता क्या है मैं तुम से जान जाना चाहता हूँ ||
बढाते जा रहे हैं लोग दिल के फ़ासिलों को |
मैं उन ही फ़ासिलों को तो मिटाना चाहता हूँ ||
मुझे अब मौत की आहट सुनाई दे रही है |
सभी से आज मैं मिलना मिलाना चाहता हूँ ||
अगर मौक़ा मिले तो ज़िंदगी के मुद्दओं को |
ख़ुदा के रूबरू हो कर उठाना चाहता हूँ ||
हँसा दूँ आज ‘सैनी’ को मैं आँसूं उसके पोंछू |
कमाई है यही जिसको कमाना चाहता हूँ ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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